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गोल्डन ब्लड सुनकर ही किसी बेशकीमती चीज़ का अहसास होता है। यह ख़ून का दुर्लभ ग्रुप है जो दुनिया में बहुत कम लोगों का होता है। भले ही इस ब्लड ग्रुप वाले लोगों को आप ख़ास समझें मगर हक़ीकत यह है कि उनके लिए यह बात कई बार जानलेवा भी बन जाती है। जिस ब्लड ग्रुप को गोल्ड ब्लड कहा जाता है, उसका असली नाम आरएच नल (Rh null) है।
Rh null क्या है और यह क्यों इतना क़ीमती समझा जाता है कि इसकी तुलना सोने से होती है? आख़िर इस ब्लड ग्रुप वाले लोगों को क्या ख़तरा होता है? अगर किसी के रेड ब्लड सेल में Rh एंटीजन है ही नहीं, तो उसका ब्लड टाइप Rh null होगा।बायोमेडिकल रिसर्च पोर्टल मोज़ेक पर छपे लेख में पेनी बेली ने लिखा है कि पहली बार इस ब्लड टाइप की पहचान 1961 में की गई थी। ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासी महिला में यह मिला था। उसके बाद से लेकर अब तक पूरी दुनिया में इस तरह से 43 मामले ही सामने आए हैं। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलंबिया में हेमैटोलॉजी में विशेषज्ञ नतालिया विलारोया ने बीबीसी को बताया कि इस तरह का ब्लड अनुवांशिक रूप से मिलेगा। उन्होंने कहा, "माता-पिता दोनों इस म्यूटेशन के वाहक होने चाहिए।"
Rh null ब्लड टाइप एक वरदान भी हो सकता है और अभिशाप भी। एक तरह से तो यह यूनिवर्सल ब्लड है जो किसी भी Rh टाइप वाले या बिना Rh वाले दुर्लभ ब्लड टाइप वाले को चढ़ाया जा सकता है। मगर ऐसा बहुत कम मामलों में ही किया जाता है क्योंकि इसे पाना लगभग असंभव है। नेशनल रेफ़रेंस लैबरेटरी के निदेशक डॉक्टर थिएरी पेरर्ड के हवाले से मोज़ेक पर लिखा गया है, "बेहद दुर्लभ होने के कारण ही इसे गोल्डन ब्लड कहा जाता है।" बेली के मुताबिक़, इस टाइप का ख़ून बेशकीमती होता है। भले ही इस ख़ून को ब्लड बैंकों में बिना किसी नाम-पते के स्टोर किया जाता है, मगर ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें वैज्ञानिकों ने अपने शोध के लिए ब्लड सैंपल लेने के इरादे से रक्तदान करने वालों का पता लगाने की कोशिश की है।
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