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| चिकनगुनिया एक संक्रामक बुखार है | चिकनगुनिया का चिकन या मुर्गी से कोई ताल्लुक नहीं है, इस बीमारी के नाम की कहानी काफ़ी दिलचस्प है | इस बीमारी का पता पहली बार 1952 में अफ्रीका में चला था | मोज़ाम्बिक और तंजानिया के सीमावर्ती मकोंडे इलाक़े में इस बीमारी ने गंभीर रूप ले लिया था | मच्छर के काटने से होने वाली इस बीमारी के वायरस की पहचान एक बीमार व्यक्ति के ख़ून के नमूने से हुई थी | मकोंडे इलाक़े में स्वाहिली भाषा बोली जाती है जिसमें चिकनगुनिया का मतलब होता है-"अकड़े हुए आदमी की बीमारी |" जिस व्यक्ति के ख़ून के नमूने से चिकनगुनिया वायरस की पहचान हुई थी, वह हड्डी के दर्द से बुरी तरह अकड़ गया था | एक ख़ास प्रजाति का मच्छर ही चिकनगुनिया फैलाता है जिसे एडिस एजेप्टी कहा जाता है, इस मच्छर की पहचान एक जर्मन डॉक्टर जोहान विल्हेम ने 1818 में की थी | यही वो मच्छर है जो डेंगू और ज़ीका जैसी बीमारियाँ भी फैलाता है | मच्छर का नाम पड़ने की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है | एडिस एजिप्टी कई बार डेंगू और चिकनगुनिया दोनों के वायरस वाला होता है | लेकिन वैज्ञानिक ये नहीं जान पाए हैं कि उसके काटे किसी व्यक्ति को डेंगू तो किसी दूसरे व्यक्ति को चिकनगुनिया रोग क्यों होता है? ये मच्छर की मर्जी है या व्यक्ति का दुर्भाग्य? यह मामूली नहीं बल्कि बहुत ही ख़तरनाक मच्छर है, जो अफ्रीका, एशिया और लातीनी अमरीका में पाया जाता है | "एडिस एजिप्टी" ग्रीक नाम है जिसका मतलब होता है "बुरा मच्छर", ये मच्छर काफ़ी बुरा है इसमें कोई शक नहीं है, और ये भी एजिप्टी का इजिप्ट यानी मिस्र से कोई ताल्लुक नहीं है | दिलचस्प बात ये भी है कि आप चिकनगुनिया वाले मच्छर को बहुत ग़ौर से या मैग्निफ़ाइंग ग्लास से देखें तो उसके शरीर पर सफ़ेद धारियाँ होती हैं, जो उसकी ख़ास पहचान है | मलेरिया फैलाने वाला मच्छर अलग प्रजाति का होता है जिसे एनोफिलिस कहते हैं, और सिर्फ़ मादा मच्छर के काटने से ही मलेरिया होता है, नर मच्छर के काटने से नहीं | चिकनगुनिया का पता ब्लड टेस्ट और कुछ ज़रूरी चिकित्सा परिक्षाओं से किया जा सकता है, जिसमें सेरोलॉजिकल और विरोलॉजिकल टेस्ट शामिल हैं। आइये जानते हैं इस रोग के लक्षण के बारे में
चिकनगुनिया बुखार में इंसान के जोड़ों में काफी दर्द होता है। कभी-कभी तो ये दर्द ठीक होने में 6 महीने से ज्यादा का समय लग जाता है। मरीज को हमेशा बुखार रहता है (100 डिग्री के आस-पास)। एक निर्धारित समय आने पर बुखार एकदम से तेज भी हो जाता है। शरीर पर लाल रंग के रैशेज बन जाते हैं। मरीज को भूख नहीं लगती और हमेशा थकान महसूस होती है। सिर में दर्द और खांसी-जुकाम रहता है। चिकनगुनिया का इलाज अभी तक इस बीमारी के लिए कोई भी औषधी, टीका या इलाज नहीं है। चिकनगुनिया का मच्छर पूरा दिन सक्रिय रहता है, ख़ासतौर से सुबह और दोपहर में। इसलिए इन जगहों पर जाने से बचें, जहां मच्छर ज़्यादा हो। अपनी शरीर पर मच्छर को दूर भगाने वाले उत्पाद या रात को सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें। फिर भी अगर आप चिकनगुनिया का शिकार होते हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें:-
पेय पदार्थ को ज़्यादा से ज़्यादा अपने आहार में शामिल करें। शाम होते ही खिड़की-दरवाजों को बंद रखें, ताकि मच्छर घर में प्रवेश ना कर पायें। मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचें, क्योंकि मच्छर आपको काटने के बाद आपके शरीर का इंफेक्शन दूसरे व्यक्ति के शरीर में संक्रमित कर सकता है। बुखार और जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए आप पैरासिटामॉल ले सकते हैं। घर पर आराम करें और अपने नज़दीकी डॉक्टर से सलाह लें। फूल बांह वाले कपड़े पहनिये और हमेशा अपने आप को ढ़ककर घर से निकलें। खूब पानी पीजिये, जिससे आपका इम्यून पॉवर मजबूत रहे। बाहर का खुला खाना या पानी पीने से बचें, कोशिश करें कि घर पर ही खायें। लक्षणों के आधार पर डॉक्टर से सलाह लेकर ही दवा लें, अपने डॉक्टर खुद ना बनें। कूलर के पानी को रोज बदलिये। घर में पानी एकत्रित होने ही ना दें। अपने घर के अंदर और आस-पास हमेशा सफाई रखें। |