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पौराणिक कथाओं में उड़न खटोले और विमान का जिक्र अकसर होता आया है. रामायण में जहां सीता का अपहरण करने के लिए रावण ने अपने प्राइवेट उड़न खटोले का उपयोग किया था वहीं महाभारत युगीन काल में भी हवा में उड़ने वाले वाहन प्रचलित थे. लेकिन फिर भी जब मॉडर्न युग के एरोप्लेन की बात आती है तो हम हवाई जहाज बनाने का श्रेय राइट ब्रदर्स को दे देते हैं. खुद ही सोचिए यह कितनी गलत बात है कि जिस तकनीक का आविष्कार भारत में हुआ उसके लिए अमेरिकी बंधुओं राइट ब्रदर्स को क्रेडिट दिया जाता रहा है | अब आपके मन में यह ख्याल भी आ रहा होगा कि पौराणिक काल के वायुयान और मॉडर्न एज के वायुयान की तकनीकों में जब जमीन-आसमान का अंतर है तो क्यों ना इसके लिए अमेरिकी बंधुओं को थैंक्स कहा जाए? चलिए आपकी ये दुविधा भी हम दूर करते हुए सभी भारतीयों को अपने ऊपर गर्व करने का एक मौका दिए देते हैं क्योंकि एरोप्लेन का आविष्कार अमेरिका में नहीं बल्कि भारत में हुआ था जिसे मुंबई स्थित चौपाटी से उड़ाया गया था. राइट ब्रदर्स ने जिस हवाई जहाज का आविष्कार किया था वह 17 दिसंबर, 1903 में उड़ाया गया था जबकि इससे करीब 8 साल पहले ही शिवकर बापूजी तलपडे नाम के एक मराठा ने अपनी पत्नी की सहायता से 1895 में हवाई जहाज को बनाया जो 1500 फीट ऊपर उड़ा और फिर वापस नीचे गिर गया. मुंबई स्थित चिर बाजार में रहने वाले शिवकर बापूजी तलपडे अपने अध्ययन काल से ही हवाई जहाज बनाने की विधि को जानने और समझने के लिए इच्छुक थे. आपको बता दें कि भारत में विमान शास्त्र के सबसे बड़े ज्ञाता महर्षि भारद्वाज ने सबसे पहले इस विषय पर पुस्तक लिखी और फिर इसके बाद अन्य ज्ञाताओं ने सैकड़ों पुस्तकों के जरिए विमान बनाने की तकनीक को और अधिक विस्तृत तरीके से पेश किया. भारत में विमानशास्त्र से संबंधित जो भी पुस्तकें उपलब्ध हैं उनमें से सबसे पुरानी किताब 1500 वर्ष पहले लिखी गई थी. महर्षि भारद्वाज की किताब शिवकर बापूजी तलपडे के हाथ लगी और उन्होंने इसका विश्लेषण भी किया. इस पुस्तक के बारे में बापूजी तलपडे ने कुछ बेहद रोच बातें कहीं जैसे: तत्कालीन बड़ौदा नरेश सर सयाजी राव गायकवाड़ और बम्बई के प्रमुख नागरिक लालाजी नारायण के अलावा महादेव गोविंद रानाडे के सामने शिवकर बापूजी तलपडे ने अपना हवाई जहाज उड़ाया. इससे पहले वो अपनी इस तकनीक को और बड़े स्तर पर ख्याति दिलवा पाते उनकी पत्नी का देहांत हो गया और जीवन संगिनी के जाने के बाद संसार के प्रति उनका मोह कम हो गया और 17 सितम्बर, 1917 को उन्होंने भी अपना देह त्याग दिया. तलपडे के देहांत के बाद विमान का मॉडल और संबंधित सामग्री को उनके उत्तराधिकारियों ने एक ब्रिटिश फर्म Сरैली ब्रदर्सТ को बेच दिया और फिर वही हुआ जिसका भय था. पहले वायुयान को बनाने का सारा श्रेय अमेरिकी बंधुओं को दे दिया गया. सन 1895 का एक नमी भरा दिन.... स्थान..भारत में मुंबई का जुहू समुद्र-तट..हज़ारों लोगों की भीड़ के साथ मुंबई हाईकोर्ट के तत्कालीन जज महादेव गोविन्द रानाडे और महाराजा वड़ोदरा सेयाजी राव गायकवाड़ जैसे गणमान्य व्यक्ति वहां जे.के. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के एक अध्यापक शिवकर बापूजी तलपड़े के बुलावे पर उपस्थित थे !सामने के खुले मैदान में एक अजीब सी मशीन.. जिसे इससे पहले किसी ने देखा न सुना.. भीड़ की नज़रों के सामने खड़ी थी.. और इस बड़ी सी मशीन के विषय में तलपड़े जी का दावा था कि वो उसे हवा में उड़ा सकते हैं.. ! विश्वास..कौतूहल.. अविश्वास के मिले-जुले भावों में डूबी हज़ारों जोड़ी आँखें उस मशीन को आश्चर्य भरी दृष्टि से ताक रही थी.. !तलपड़े जी आत्मविश्वास से भरपूर अपने हाथों में एक छोटा सा चपटा यन्त्र थामे खड़े थे.. अचानक उनकी उँगलियों ने उस चपटे से यंत्र पर कुछ हरक़त की.. और .. यह क्या.. ?उपस्थित जन-समुदाय की आँखें उस समय फटी सी रह गईं जब घरघराहट की सी आवाज़ निकालते हुए वो बड़ी सी मशीन धीरे-धीरे जमीन छोड़ने लगी.. लोगों ने बार-बार देखा.. आँखें मल-मल कर देखा..झुक-झुक कर देखा.. किन्तु वो मशीन सच में अब धरती के सम्पर्क में नहीं रह गयी थी.. एक-एक पल बीत रहा था और देखते ही देखते वो मशीन ज़मीन से कोई 1500 फुट की ऊंचाई पर चक्कर काटने लगी.. लोग अपनी आँखों के ऊपर हथेली रख सन्नाटे में डूबे वजनी लोहे के उस संजाल को हवा में नाचते देख रहे थे.. थोड़ी ही देर पश्चात तलपड़े जी के बाएँ हाथ में थमे चपटे छोटे यंत्र पर नाचती उँगलियों के आदेश को मान वो मशीन एक गर्ज़ना के साथ ज़मीन पर सकुशल वापस आ कर टिक गई.. कहीं कोई आवाज़ नहीं.. इतने में इस सन्नाटे को तोड़ते हुए तालियों का शब्द वहाँ गूँज उठा.. महाराजा वड़ोदरा सम्मोहन की सी अवस्था में बेतरह ताली बजा रहे थे.. फिर क्या था.. जनता की तालियों की गड़गड़ाहट उस भारी मशीन की गर्ज़ना के शब्द से होड़ करने लगी.. !उसके पश्चात कुछ रहस्यमयी घटनाओं का एक सिलसिला.. इंग्लैंड की रैली ब्रदर्स नाम के एक कंपनी का भोले-भाले वैज्ञानिक तलपडे जी से संपर्क..उनकी संदेहजनक मृत्यु.. डिज़ाइन का लन्दन .. फिर वहाँ से अमरीका के राईट बंधुओं के हाथ लगना.. और महर्षी भारद्वाज द्वारा रचित 8 अध्याय.. 100 खण्ड.. 500 सिद्धांत.. तीन हज़ार श्लोक.. 32 तरीके से 500 तरह के विमान बनाना सिखाने वाले विमान शास्त्र के मानस-शिष्य शिवकर जी तलपड़े की अदम्य साधना के फल को दुनिया आज मक्कार अमरीकी राईट बंधुओं की एक महान देन के रूप में जानती है.., इस घटना के आठ वर्ष पश्चात 1903 में जिनका बनाया लोहे का कबाड़ मात्र डेढ़ सौ फुट हवा में उछल वापस ज़मीन से टकरा कर नष्ट हो गया था.. !क्या ये पर्याप्त कारण नहीं कि हम अपनी मिटटी पर गर्व करें.. ? इस हवाई-जहाज़ का नाम तलपडे जी ने Сमरुत्सखाТ रखा था. Сमरुत्सखाТ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है Сहवाओं का मित्रТ. तलपडे जी के छात्रों में से एक, सातवलेकर जी ने कहा था कि Сमरुत्सखाТ कुछ मिनटों के लिए हवा में किसी पंछी की तरह उड़ा था. इस बात के और सबूत मिलते हैं कि शिवकर बापूजी तालपडे जी ने वाकई में दुनिया का सबसे पहला हवाई जहाज़ बनाया था. पहला सबूत- सातवलेकर जी का ऊपर दिया गया बयान.
दूसरा सबूत- महादेव गोविन्द रानाडे का Сमरुत्सखाТ के उड़ान भरने के समय वहां पर मौजूद रहना. लीजिए! हमने 3 स्पष्ट और मज़बूत सबूत आपके सामने रख दिए. तलपडे जी ने अपना विमान, पहली उड़ान के बाद अपने स्टोर हाउस में रख दिया था. और वह वहाँ काफी समय तक पड़ा रहा. तलपडे, संस्कृत के विद्वान थे और पुराणों में दिए गए विमानों के उल्लेखों ने उन्हें मरुत्सखा का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया. ऐसा बहुत कुछ है जिसे इंसान ठीक तरह से नहीं समझ पाया है. हम पूरी तरह से स्कूलों में सिखाई गई चीज़ों पर निर्भर नहीं हो सकते. इस संसार में ऐसी बहुत चीज़ें हैं जिनका आविष्कार पिछली सदी में हुआ है लेकिन पुराणों और वेदों में उन आविष्कारों का पहले से ही उल्लेख है. हमारी भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है. साश्त्रों और वेदों में दिए ज्ञान को हासिल करना हमारा कर्तव्य है. ठीक उसी तरह जैसे शिवकर बापूजी तलपडे किया था. शिवकर बापूजी तलपडे का जन्म 1864 में तबकी बंबई में हुआ था। संस्कृत के विद्वान तलपडे को वैमानिक शास्त्र में गहरी दिलचस्पी थी जिसकी प्रेरणा उन्हें ऋगवेद के गहन अध्ययन से प्राप्त हुई थी। उस समय लोगों की धारणा थी कि हवा से भारी किसी भी चीज को हवा में नहीं ठहराया जा सकता। पर तलपडे का विचार कुछ अलग था। जिसका संबल उन्हें ग्रंथों से मिल रहा था तथा उनके मार्ग-दर्शक थे पंडित सुब्बैया शास्त्री। अपनी अथक मेहनत और लगन से उन्होंने एक मशीन की रुपरेखा बना उस पर काम करना शुरू किया। उनकी मेहनत रंग लाई और दुनिया के पहले हवाई जहाज का निर्माण संभव हो पाया। तलपडे ने उसको नाम दिया "मारुतसखा". इसकी सफल मानवरहित उड़ान का प्रदर्शन हजारों लोगों की भीड़ के सामने बंबई की चौपाटी में किया था। इसका जिक्र "डेक्कन हेराल्ड" अखबार ने 2003 में कुछ इस तरह किया है, "भारत के मशहूर राष्ट्रीयता वादी जज श्री गोविन-दा रानाडे और एच. एच. सियाजी राव गायकवाड़ ने मारुतसखा की मानव रहित संक्षिप्त उड़ान को देख कहा कि देश में विमानन विज्ञान का भविष्य उज्जवल है". तलपडे के एक शिष्य पी. सातवेलकर के साथ-साथ और कई लोगों और पुस्तकों ने भी इस ऐतिहासिक घटना की पुष्टि की है। इन के अनुसार यह मशीन जमीन पर गिरने के पहले हवा में करीब 1500 फिट की ऊंचाई पर कई मिनटों तक रही। इस अद्भुत परिक्षण के आठ साल बाद, 17 दिसंबर 1903 को राइट भाईयों की मशीन 120 फिट की ऊंचाई तक जा 37 सेकेण्ड तक ही हवा में रह पाई थी। पर तलपड़े की इस महान उपलब्धि उस समय की अंग्रेज सरकार को रास नहीं आई और उसने बड़ौदा के महाराज पर जोर डाला कि परिक्षण पर रोक लगाई जाए। ब्रिटिश हकूमत के आगे झुकते हुए महाराज ने तलपडे को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद कर दी लिहाजा इस दिशा में और आगे कुछ नहीं हो पाया। इस परिक्षण के बाद इस मशीन को तलपडे के घर में रख दिया गया।काफी दिनों बाद मारुतसखा के एक मॉडल का प्रदर्शन मुंबई के "विले-पार्ले" में हुई एक प्रदर्शनी में किया गया। इससे संबंधित कागजात "हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड" ने संभाल कर अपने पास रखे हुए हैं। इस सवाल का कि हमारे ग्रंथों में इतनी बेशुमार जानकारी होने के बावजूद क्यों नहीं उसका उपयोग किया सका, एक ही उत्तर हो सकता है कि इस विद्या के दुरुपयोग होने के डर और आम इंसान की भलाई के लिए ही हमारे महान ऋषि-मुनियों ने इसको सार्वजनिक नहीं होने दिया होगा। जैसा कि परमाणु शक्ति के बारे में किया गया। |