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| आपने KFC का नाम जरूर सुना होगा । हो सकता है की, आपको KFC चिकन पसंद ना हो, पर यकीनन आपको इसकी कहानी जरुर पसंद आयेगी। क्या आपको पता हैं की KFC कभी एक सड़क किनारे शुरू हुई थी । KFC को इस मुकाम तक पहुंचाने के पीछे एक जुनूनी आदमी की सनक जिम्मेदार है, और ये व्यक्ति है - हरलैंड डेविड सैंडर्स | आँखों पर चश्मा लगाए हुए सैंडर्स को उनके साफ-सुथरे सफेद सूट, काली टाई और हाथ में पकड़ने वाली छड़ी से आसानी से पहचाना जा सकता है और केएफसी के हर बोर्ड / हर ब्रांड / हर प्रोडक्ट पर उन्हें इस रूप में देखा जा सकता है। हरलैंड डेविड सैंडर्स एक अमेरिकी उद्यमी थे। केएफसी की स्थापना 1952 में हरलैंड सैंडर्स के द्वारा की गई थी जो शुरू में महामंदी के दौरान कोर्बिन, केंटुकी में सड़क के किनारे फ्राइड चिकन बेचा करते थे । इसीलिए उन्हें KFC के संस्थापक के रूप में माना जाता है । केएफसी (KFC) (केंटुकी फ्राइड चिकन) एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट है जिसका मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका का राज्य केंटुकी में स्थित है। यह मैकडॉनल्ड्स के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी रेस्टोरेंट (बिक्री के आधार पर) है। यह Yum! ब्रांड्स की सहायक कंपनी है। आज के समय में KFC एक मशहूर ब्रांड में से एक है । आज पुरे विश्व में KFC के हजारो से भी ज्यादा रेस्टोरेंट उपलब्ध है और यह लोगो में काफी लोकप्रिय फास्टफूड में से एक है । भारत में KFC का पहला रेस्टोरेंट 1995 में बैंग्लोर में खोला गया था । 2004 में इसका विस्तार पुरे भारत में हो चूका है । आज भारत की हर बड़े शहर में KFC का एक रेस्टोरेंट मौजूद है । कुछ लोग कम उम्र में सफलता प्राप्त कर लेते है और कुछ काफी समय बाद । परन्तु कई लोग ऐसे होते हैं, जो 40-50 वर्ष की आयु के बाद हार मानकर बैठ जाते हैं और उन्हें लगता है कि सफलता उनकी किस्मत में है ही नहीं। लेकिन हरलैंड सैंडर्स एक ऐसा नाम है, जिन्होंने 65 वर्ष की आयु में सफलता का स्वाद चखा । एक ऐसा व्यक्ति जो दिवालिये से सीधे अरबपति बन गया । KFC के शुरुआत की कहानी बड़ी रोचक है । हरलैंड सैंडर्स का जन्म जन्म सितम्बर 9, 1890 को हेनरीविल्ले, इंडियाना में एक गरीब मजदुर के यहाँ हुआ था। उनके पिता का नाम विल्बर डेविड सैंडर्स तथा माता का नाम मारग्रेट डनलेवी था | जब वे मात्र सात साल के थे उनके पिताजी गुजर गए । अब उनके परिवार में एक माँ, दो छोटे भाई-बहन और सात साल का छोटा बालक हरलैंड सैंडर्स मौजूद था । तीनो बच्चों के पालन-पोषण के लिए माँ खेतों में काम किया करती थी और दो छोटे भाई-बहनो को सँभालने और खाना बनाकर खिलाने की जिम्मेदारी हरलैंड सैंडर्स को सौपी गई थी । सैंडर्स अपने दोनों छोटे भाई-बहन का ध्यान रखने और उन्हें अच्छा भोजन देने के लिए अपनी माँ से खाना बनाना भी सीख रहे थे । वे भोजन बनाने में प्रवीण हो गए थे इसीलिए अपने परिवार को भोजन बनाकर खिलाने की जिम्मेदारी अब से सैंडर्स की ही थी । जब वे 10 साल के हुए, तो अपने परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपनी माँ के साथ खेतों में काम करना प्रारम्भ कर दिया । सैंडर्स के लिए दिन-रात मेहनत करके दो वक्त की रोटी की जुगाड़ कर पाना बहुत मुश्किल था और उसी के साथ अपने स्कूल की पढ़ाई का खर्चा उठा पाना भी । इसीलिए उन्हें सातवीं कक्षा में ही अपना स्कूल छोड़ना पड़ा । उसके बाद उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली तो सैंडर्स घर से भाग गए । इसक बाद उन्होंने जोसफिन किंग से शादी की । इसके बाद उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा | उन्हें कभी स्टीम बोट में काम करना पड़ा, तो कभी इंस्योरेंस सेल्समेन की नौकरी करनी पड़ी, तो कभी रेलरोड़ में फायरमैन का काम करना पड़ा |
अब तक कई छोटी बड़ी नौकरी करने और छोड़ने की वजह से उनकी वाइफ ने उन्हें तलाक दे दिया । उन्होंने बाद में क्लाउडिया प्राइस से शादी कर ली । संघर्ष के इसी दौर में आगे बढ़ते हुए सैंडर्स को एक स्टैण्डर्ड आयल कंपनी ने सन 1930 में एक पेट्रोल पंप के सर्विस स्टेशन पर काम करने का मौका मिला, जोकि अमेरिका के केंटुकी राज्य में स्थित था । वहाँ वह उस स्टेशन पर रुकने वाले लोगो के लिए चिकन पकाते थे | लाजवाब और स्वाद से भरपूर चिकन बनाने के कारण वे शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गए । इसीलिए वे जहां पर कार्य कर रहे थे उसके सामने वाली जगह को किराए पर लेकर उन्होंने अपना चिकन बेचने का छोटा सा बिज़नेस स्टार्ट किया । आस- पास कोई रेस्तरा नहीं होने के वजह से उन्हें वहाँ आने वाले लोगो को खाना भी खिलाना पड़ता था जिससे वे दो पैसे और मुनाफा कमा लेते थे | धीरे-धीरे वहाँ सर्व की जाने वाली चिकन को लोगो का बेतहासा प्यार मिलने लगा एवं रेस्तरा चलने लगा | सूत्रों की माने तो सैंडर्स को बचपन से ही चिकन के प्रति लगाव था । वहाँ पर उन्होंने चिकन पकाने का एक नया तरीका प्रेशर फ्रायर ईजाद किया | प्रेशर फ्रायर से चिकन जल्दी पकता था लेकिन उसका स्वाद लोगो को पसंद नहीं आया | अपने चिकन के साथ अजीबो - गरीब प्रयोग करने वाले सैंडर्स ने आखिरकार 9 सालो बाद 11 मसालों को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण बना लिया जो आने वाले दिनों में लोगो को चिकन के प्रति दीवाना बनाने वाला था | लेकिन समय का पलटवार कुछ ऐसा था की, एक दिन सैंडर्स का रेस्तरा बंद हो गया । क्योकि उस रेस्तरां के समीप सड़क बनने का कार्य आरम्भ हुआ एवं 65 वर्ष की उम्र में एक बार फिर वे बेरोजगार हो गए । उन्होंने रेस्टोरेंट में ताला लगाया और रिटायरमेंट लेकर आराम की जिंदगी बिताने का फैसला किया। उसी समय उन्हें सामाजिक सुरक्षा के तहत मिलने वाली रकम का पहला चेक 105 डाॅलर की रकम मिली । इस रकम ने उनकी जिंदगी को बदल दिया और उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जिसने भविष्य में उन्हें विख्यात कर दिया। 65 साल के उम्र में भी हाथ पर हाथ धर के बैठे रहने के बजाय उन्होंने खुद पर एवं बनाये गए मसाले पर भरोसा दिखाया एवं एक पुरानी कार एवं कुकर लेकर निकल पड़े अपनी रेसिपी बेचने । खाने के शौकीनों तक अपनी इस डिश को पहुंचाना सैंडर्स के लिये उतना आसान नहीं रहा और उन्हें इसके लिये दिन-रात एक करना पड़ा। प्रारंभ में सैंडर्स ने अपने इलाके के हर घर और रेस्टोरेंट के चक्कर काटे और लोगों को अपना बनाये हुए चिकन के बारे में बताया। सैंडर्स को उम्मीद थी कि उन्हें कोई तो ऐसा साथी मिलेगा जो उनकी इस चिकन के असली स्वाद को पहचानेगा और इसे दूसरों तक पहुंचाने में मदद करेगा लेकिन उन्हें हर ओर से निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने लोगो को अपने चिकन के मुरीद बनाने के कई रस्ते खोजे । सैंडर्स अपने घर से निकलकर शहर के विभिन्न होटलों में जाते और वहां की रसोई में अपना फ्राइड चिकन तैयार करते। अगर होटल के मालिक को उनका बनाया चिकन पसंद आता तो वह उस होटल के मेन्यू में शामिल हो जाता। अपना पहला आर्डर लेने के लिए उन्होंने लगभग 1000 रेस्तरा के चक्कर लगाये तब जाकर कही उन्हें अपना पहला आर्डर मिला । आपको हैरानी होगी कि वह 1009 बार असफल रहे और 1009 लोगों ने उनके चिकन को रिजेक्ट कर दिया, तब जाकर उनको सफलता मिल ही गई । जिसके बाद एक होटल मालिक को उनका चिकन पसंद आया। और इसके बाद शुरू हुआ केएफसी के तैयार होने का सिलसिला। सैंडर्स और उस होटल मालिक के बीच यह तय हुआ कि वहां बिकने वाले हर चिकन के बदले उन्हें 5 सेंट का भुगतान मिलेगा और इस तरह सैंडर्स का बनाया फ्राइड चिकन बाजार की दहलीज तक पहुंचने में कामयाब हुआ। लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी। इस चिकन को पकाने में क्या मसाले इस्तेमाल हो रहे हैं इस राज को राज रखने के लिये सैंडर्स ने रेस्टोरेंट में मसालों का पैकेट भेजना शुरू कर दिया। इस तरह से वहां उनका चिकन भी बन जाता और दूसरों को उनकी खुफिया रेसिपी का पता भी नहीं चलता । उसके बाद फिर कभी उन्होंने मुड़कर नहीं देखा | अमेरिका और कनाडा में घूम-घूम कर ही उन्होंने लगभग 600 फ्रेंचाइजी बाँट दिए | एक ऐसी कंपनी जिसका कोई दफ्तर एवं कोई आउटलेट न हो उसके लिए ये कामयाबी एक बहुत बड़ी बात थी । हरर्लैंड सैंडर्स द्वारा बनाया गया फ्राइड चिकन केंटकी के गवर्नर को इतना पसंद आया की उन्होंने सैंडर्स को कर्नल की उपाधि तक दे डाली । हलाकि 1964 में सैंडर्स ने अपने ब्रांड को एक अमेरिकी कंपनी को लगभग 20 लाख डॉलर में बेच दिया, लेकिन वे खुद कंपनी के प्रवक्ता पद पर बने रहे। मगर उससे पहले KFC एक बहुत बड़ी ब्रांड बन चुकी थी | सैंडर्स के बनाये चिकन में उन्हें इतना नाम दिया कि वर्ष 1976 में उन्हें दुनिया के सबसे रसूखदार हस्तियों की सूचि में दूसरे पायदान पर रखा गया। मगर 1991 में पुरी दुनिया में बेहतर स्वास्थ्य के लिए तली चीजो के खिलाफ चले अभियान के बाद केंटकी फ्राइड चिकन का नाम बदल कर KFC कर दिया गया | नाम छोटा होने के वजह से अब कंपनी इस नाम के साथ दूसरे प्रोडक्ट भी बेच सकती थी | कंपनी ने विभिन्न देशो की आबादी को टारगेट कर कुछ खास वेज आइटम एंड स्नेक्स की भी शुरुआत कर दी जिन्हें लोगो ने खूब पसंद किया । नवंबर 2006 में कंपनी एक नए लोगो के साथ बाज़ार में आई जिसमे सैंडर्स का सफ़ेद कपड़े में फोटो लगाया गया | भले ही सैंडर्स ने कंपनी बेच दी हो परन्तु उनके संघर्ष एवं उनके स्वाद को कोई भी नहीं भुल सकता | सूत्रों की माने तो आज भी उनके द्वारा 11 मसालो से बनाया गया मिश्रण एक टॉप सीक्रेट के तरह तिजोरी में बंद हैं एवं पुरे दुनिया में बस कुछ गिने- चुने लोगो को ही इसकी जानकारी हैं | 16 दिसंबर 1980 को 90 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी | 65 की उम्र में ज्यादातर लोग काम करने के बारे में सोचना छोड़ देते हैं । लेकिन कुछ विरले लोग होते है, जो उम्र को दरकिनार कर बस आगे बढ़ते जाते है । दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है । ईमानदारी और मेहनत से किया गया हर कार्य सफलता जरूर दिलाता है । |