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| आज अमेरिका में सिलिकान वैली में तब तक कोई कंपनी सफल नहीं मानी जाती जब तक उसमें कोई भारतीय इंजीनियर कार्यरत न हो ....,भारत के आई आई टी जैसे संस्थानों के इंजीनियर्स ने विश्व में अपनी बुद्धि से भारतीय श्रेष्ठता का समीकरण अपने पक्ष में कर दिखाया है . प्रतिवर्ष भारत रत्न सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्मदिवस इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है . पंडित नेहरू ने कल-कारखानों को नये भारत के तीर्थ कहा था , इन्ही तीर्थौ के पुजारी , निर्माता इंजीनियर्स को अभियंता दिवस पर बधाई ....विगत कुछ दशको में इंजीनियर्स की छवि में भ्रष्टाचार के घोलमाल में बढ़ोत्री हुई है , अनेक इंजीनियर्स प्रशासनिक अधिकारी या मैनेजमेंट की उच्च शिक्षा लेकर बड़े मैनेजर बन गये हैं , आइये इंजीनियर्स डे पर कुछ पल चिंतन करे समाज में इंजीनियर्स की इस दशा पर , हो रहे इन परिवर्तनो पर ... इंजीनियर्स अब राजनेताओ के इशारो चलने वाली कठपुतली नहीं हो गये हैं क्या? देश में आज इंजीनियरिंग शिक्षा के हजारों कालेज खुल गये हैं , लाखों इंजीनियर्स प्रति वर्ष निकल रहे हैं , पर उनमें से कितनों में वह जज्बा है जो भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया में था .......मनन चिंतन का विषय है . अभियंता दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष '15 सितम्बर' को मनाया जाता है। इसी दिन भारत के महान अभियंता और 'भारतरत्न' प्राप्त मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिवस होता है। आज भी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत के विश्वकर्मा के रूप में बड़े सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। अपने समय के बहुत बड़े इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को भारत ही नहीं, वरन विश्व की महान प्रतिभाओं में गिना जाता है। अभियंताओं का संकल्प दिवस एक सौ एक वर्ष का यशस्वी जीवन जीने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सदैव भारतीय आकाश में अपना प्रकाश बिखेरते रहेंगे। भारत सरकार द्वारा 1968 ई. में डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जन्म तिथि को 'अभियंता दिवस' घोषित किया गया था। तब से हर वर्ष इस पुनीत अवसर पर सभी भारतीय अभियंता एकत्रित होकर उनकी प्रेरणादायिनी कृतित्व एवं आदर्शो के प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित कर अपने कार्य-कलापों का आत्म विमोचन करते हैं और इसे संकल्प दिवस के रूप में मनाने का प्रण लेते हैं। संकल्प अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों का समर्पित भाव से निर्वहन करते हैं। भारत की आज़ादी के बाद नये भारत के निर्माण और विकास में प्रतिभावान इंजीनियरों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गांव एवं शहरों के समग्र विकास के लिए सड़कों, पुल-पुलियों और सिंचाई जलाशयों सहित अधोसंरचना निर्माण के अनेक कार्य हो रहे हैं। हमारे इंजीनियरों ने अपनी कुशलता से इन सभी निर्माण कार्यो को गति प्रदान की है। राज्य और देश के विकास में इंजीनियरों के इस योगदान के साथ-साथ 'अभियंता दिवस' के इस मौके पर 'भारतरत्न' सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की प्रेरणादायक जीवन गाथा को भी याद किया जाता है। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया - संक्षिप्त परिचय विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर, जो कि अब कर्नाटक में है, के 'मुद्देनाहल्ली' नामक स्थान पर 15 सितम्बर, 1861 को हुआ था। बहुत ही ग़रीब परिवार में जन्मे विश्वेश्वरैया का बाल्यकाल बहुत ही आर्थिक संकट में व्यतीत हुआ था। उनके पिता वैद्य थे। वर्षों पहले उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के 'मोक्षगुंडम' नामक स्थान से मैसूर में आकर बस गये थे। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्म स्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के 'सेंट्रल कॉलेज' में दाखिला लिया। लेकिन यहाँ उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें ट्यूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बी.ए. की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के 'साइंस कॉलेज' में दाखिला लिया। 1883 की एल.सी.ई. व एफ.सी.ई. (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र की सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया था। कर्नाटक का भगीरथ दक्षिण भारत के मैसूर, कर्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का अभूतपूर्व योगदान रहा है। तकरीबन 55 वर्ष पहले जब देश स्वंतत्र नहीं था, तब 'कृष्णराजसागर बांध', 'भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स', 'मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी', 'मैसूर विश्वविद्यालय', 'बैंक ऑफ मैसूर' समेत अन्य कई महान उपलब्धियाँ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई। इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई। इसके लिए विश्वेश्वरैया ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाज़े बनाए, जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की थी। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। विश्वेश्वरैया ने 'मूसा' व 'इसा' नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ़ इंजीनियर नियुक्त किया गया। रोचक तथ्य मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य भी हैं, जो आज किसी भी अभियन्या को प्रेरणा प्रदान करने की अभूतपूर्व सामर्थ्य रखते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- एक बार कुछ भारतीयों को अमेरिका में कुछ फैक्टरियों की कार्य प्रणाली देखने के लिए भेजा गया। फैक्टरी के एक ऑफीसर ने एक विशेष मशीन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा- "अगर आप इस मशीन के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको इसे 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़कर देखना होगा"। भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे सबसे उम्रदराज व्यक्ति ने कहा- "ठीक है, हम अभी चढ़ते हैं"। यह कहकर वह व्यक्ति तेजी से सीढ़ी पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ा। ज्यादातर लोग सीढ़ी की ऊंचाई से डर कर पीछे हट गए तथा कुछ उस व्यक्ति के साथ हो लिए। शीघ्र ही मशीन का निरीक्षण करने के बाद वह शख्स नीचे उतर आया। केवल तीन अन्य लोगों ने ही उस कार्य को अंजाम दिया। यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया थे, जो कि सर एम.वी. के नाम से भी विख्यात थे।जब भारत में अंग्रेज़ों का शासन था, खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज़ थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था, इसलिए वहाँ बैठे अंग्रेज़ उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा- "जंजीर किसने खींची है?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- "मैंने खींची है।" कारण पूछने पर उसने बताया- "मेरा अनुमान है कि यहाँ से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।" गार्ड ने पूछा- "आपको कैसे पता चला?" वह बोला- "श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।У गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुँचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए थे और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े थे। दूसरे यात्री भी वहाँ आ पहुँचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा- "आप कौन हैं?" उस व्यक्ति ने कहा- "मैं एक इंजीनियर हूँ और मेरा नाम है डॉ. एम. विश्वेश्वरैया।" नाम सुन कर सब स्तब्ध रह गए। दरअसल उस समय तक देश में डॉ. विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ. विश्वेश्वरैया का उत्तर था- "आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।" प्रतिभाएं चाह कर भी तिरस्कृत और पराधीन नहीं रह सकती हैं और इसलिये इस महान देश के विकास और जन समस्याओं के स्थाई समाधान के लिये आवश्यक यह है कि प्रतिभाशाली अभियंताओं को वांछित सम्मान देते हुए निर्णय लेने व कार्य करने की स्वतंत्रता दी जावे ताकि वे अपनी कुशलता का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें। जब तक इंजीनियरिंग की औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी तब तक अपनी नैसर्गिक पारंगतता और व्यावहारिक अनुभवजनिकत कुशलता का प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति ही अभियांत्रिक कार्यों में टिका रह सकता था लेकिन आज के परिपेक्ष में औपचारिक शिक्षा के फैलाव व मान्न्यता के चलते यह पूरी तरह से संभव है कि अपनी डिग्री या डिप्लोमा के बूते पर कोई व्यक्ति अभियांत्रिकी वृत्ति में टिका रहे चाहे उसका नैसर्गिक झुकाव इंजीनियरिंग के प्रति नहीं भी हो, चाहे वह अपने लगातार ज्ञानवर्धन का प्रयास न करे, चाहे वह अपनी प्रोफ़ेशनल इंटीग्रिटी का यथोचित ध्यान भी न रखे । इसलिये समाज में यह व्यवस्था पनपना भी आवश्यक है कि केवल डिग्री या डिप्लोमा के आधार पर कोई व्यक्ति अभियांत्रिकी वृत्ति में टिका न रह सके और वांछित कार्य परिणाम न देने वाले व्यक्ति चिन्हित किये जा सकें। भारत शीघ्रताशीघ्र विकसित देशों की श्रेणी में आवे इसके लिये यह आवश्यक है कि समाज अपने अभियंताओं की प्रतिभा का भरपूर उपयोग करे व अभियंताओं का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे अपनी प्रतिभा का पूरा पूरा उपयोग करें, अपने ज्ञान को अद्यतन (अपडेटेड) रखें और अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह पूरी जिम्मेदारी के साथ करें ताकि उनके द्वारा निर्देशित कार्य अपनी एक विशिष्ट झलक दें और निर्धारित मापदंडों पर खरे उतरें।
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